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BHOPAL. बीजेपी में सौ कांग्रेस में डेढ़ सौ... इस आंकड़े को सुनकर आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आता है। अगर आप सोच रहे हैं कि ये हार और जीत का फैसला करने वाला कोई आंकड़ा है तो आप थोड़ा-थोड़ा सही भी हैं और थोड़ा-थोड़ा गलत ही। इसी आंकड़े ने दोनों सियासी दलों की हार और जीत का फैसला किया है, लेकिन ये नंबर सीटों का नहीं है। ये नंबर उन नेताओं का है जो अपनी ही पार्टी में रहते हुए उसकी जड़े खोखली करते रहे।
जिसके पास जितना बड़ा नंबर उसकी हार भी उतनी बड़ी
यूं जिसका आंकड़ा बड़ा होता है, जीत भी उसी की होती है, लेकिन यहां उल्टा है। जिसके पास जितना बड़ा नंबर है उसकी हार भी उतनी ही बड़ी है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद से कहीं ज्यादा बुरी हार झेलनी पड़ी। उसका जिम्मेदार यही डेढ़ सौ का फिगर था। वैसे तो सौ का फिगर भी छोटा नहीं है, लेकिन बीजेपी ने तैयारियां हर एंगल को जांच कर की थी। ठीक वैसे ही जैसे एक बच्चा जब सायकिल चलाना शुरू करता है तो उसे बहुत सारे सेफ्टी गियर पहनाते हैं। उसके बाद सायकिल में भी सपोर्ट्स लगाते हैं। ताकि बच्चा गिरे भी तो चोट न लगे। बीजेपी की चुनावी तैयारियां भी कुछ इसी तरह है। जिसमें चुनावी जहाज निकलता है तो लाइफ बोट्स के साथ। इसलिए सौ का ये नंबर बीजेपी का कुछ नहीं बिगाड़ सका और पार्टी जीत हासिल करने में कामयाब रही।
बीजेपी कोई ढील बरतने के मूड में नहीं है
अब लोकसभा का चुनाव सिर पर है और दोनों ही राजनीतिक दल उसकी तैयारियों में जुट चुके है। विधानसभा के नतीजों पर कुछ धुंध जमी थी, तस्वीर जरा देर से साफ हुई। लेकिन राम मंदिर के बाद से जो माहौल उसे देखते हुए लोकसभा के चुनाव काफी कुछ बीजेपी की ओर जाते नजर आ रहे हैं। इसके बाद भी बीजेपी कोई ढील बरतने के मूड में नहीं है। दोनों ही पार्टियों ने चुनावी तैयारी उन नेताओं को आगाह करने के साथ की है जो विधानसभा चुनाव में भितरघात करते रहे।
कांग्रेस ने ऐसे डेढ़ सौ भितरघाती चेहरों की पहचान की है
कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही की अनुशासन समिति की बैठक हुई है। दोनों ही दलों की मीटिंग का आउटकम कुछ कुछ एक जैसा ही रहा। दोनों ने अपने उन नेताओं की पहचान की, जो भीतरघाती थे। दोनों ने ही ऐसे नेताओं को ताकीद भी कर दिया। कांग्रेस की अनुशासन समिति ने ऐसे डेढ़ सौ चेहरों की पहचान की है। इससे पहले करीब 79 कांग्रेसियों को पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा चुका है। डेढ़ सौ कांग्रेसियों को अपनी हरकत पर दस दिन के भीतर जवाब देने के लिए कहा है। जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो इनमें से भी बहुत से कांग्रेसी नप जाएंगे, जबकि बीजेपी ने एक मीटिंग के बाद सौ नेताओं को भीतरघात करने के आरोप में निशाने पर लिया है।
निष्कासन की कार्रवाई जरूरी है और होनी भी चाहिए
अब सवाल ये उठता है कि दोनों ही दलों ने इन नेताओं को पहचाना कैसे और किस आधार पर उन्हें भीतरघाती मान लिया। सबसे पहला तरीका आपको बताता हूं। जिले के नेताओं और कार्यकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर ऐसे नेताओं की पहचान हुई है। कई भीतरघाती ऐसे भी हैं जिनके रिकॉर्डेड ऑडियो कॉल, वॉइस मैसेज, टेक्स्ट मैसेज या फिर वीडियो पार्टी को उपलब्ध हुए हैं और पार्टी इस नतीजे पर पहुंची है कि नेता पार्टी विरोधी गतिविधी में डूबे हुए थे। बीजेपी ने चुनाव बाद की अपनी पहली अनुशासन समिति की बैठक में ऐसे नेताओं पर सख्त एक्शन लेने का ऐलान कर दिया है और कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को पहले नोटिस थमाने और फिर भी बाज न आने पर पार्टी से निष्कासित करने तक का फैसला किया है। ऐसी कार्रवाई जरूरी है। होनी भी चाहिए। किसी भी राजनैतिक दल में अनुशासन बनाए रखने के लिए ऐसी कार्रवाई भी जरूरी है और सख्ती बरतना भी जरूरी है। वर्ना खरबूजे को देखकर दूसरे खरबूजे को रंग बदलते देर नहीं लगती।
बीजेपी का सरकार में दबदबा एक बार फिर कायम है
ये तो बात हुई कार्रवाई की। अब थोड़ा इससे एक कदम आगे बढ़कर बात करते हैं कि इस कार्रवाई के बाद क्या होगा। क्योंकि इसके आगे सोचेंगे तो कांग्रेस के सामने एक गंभीर मसला और दिखाई देगा। जिसे नजरअंदाज करना आसान भी नहीं है और ठीक भी नहीं है। जिसने पार्टी को धोखा दिया है उस पर कार्रवाई होना और उसे बाहर का रास्ता दिखाना सही है, लेकिन कांग्रेस में इस बात का कितना डर होगा। ये पहला सवाल है। बीजेपी से जो नेता निष्कासित होगा यानी निकाला जाएगा। उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ है। बीजेपी का सरकार में दबदबा एक बार फिर कायम है। ये भी प्रबल संभावनाएं हैं कि बीजेपी केंद्र की सत्ता में भी आसानी से वापसी करे। ऐसे में जिन्हें बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा वो बड़े नुकसान में रहेंगे। यानी बीजेपी नेताओं में ये डर होगा कि भीतराघात करने पर उन्हें बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। उनकी साख खत्म हो सकती है और रुतबा भी घट सकता है। एक लालच भी जरूर होगा कि पार्टी में ही रहे तो सेवा और निष्ठा का कुछ फल मिले। कोई लाभ का पद मिल जाए या किसी और तरह से सत्ता की ताकत में बने रहने का मौका मिले।
क्या कांग्रेस सिर्फ भीतरघातियों की वजह से हारी है?
कांग्रेस से बेवफाई करने वाले नेता को ऐसा डर क्यों होगा। क्या ऐसा संभव नहीं कि उसे बेवफाई करने के एवज में ज्यादा लाभ मिल रहा हो। अनुशासन का डंडा खड़काना जरूरी है, इस पहलू पर गौर करना भी कांग्रेस के लिए जरूरी है। लेकिन एक सवाल और जिस पर कांग्रेस को फोकस करना होगा। कुछ ही दिन पहले हुई कांग्रेस की अनुशासन समिति की बैठक में अधिकांश नेताओं ने हार के लिए भीतरघात को दोषी बताया। जिसके बाद भीतरघातियों की निशानदेही हुई और उन पर कार्रवाई होगी। सवाल ये है कि क्या कांग्रेस सिर्फ भीतरघातियों की वजह से हारी है।
कांग्रेस को चेहरे पर जमी झूठे दिलासों की परत हटाने की जरूरत
यहां मुझे फिर से एक पक्षी की याद आती है। ये पक्षी है शुतुरमुर्ग। उस पर खतरा आता है तो वो रेत में अपना सिर छुपा लेता है। ये मानकर कि वो किसी को नजर नहीं आ रहा और खतरा टल जाएगा। हार का ठीकरा सिर्फ भीतरघातियों के सिर फोड़कर कहीं कांग्रेस भी तो शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गलती से सिर छुपाने की कोशिश में तो नहीं जुटी है। ये सही है कि भीतरघात करने वाले नेता पार्टी की कमजोर कड़ी हैं। उनसे सख्ती से निपटना जरूरी है। पर, सिर्फ ये मान लेना कि हार के जिम्मेदार वहीं हैं। तो, ये कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस को एक बार फिर चुनावी आइने का रुख करने की जरूरत है और अपने चेहरे पर जमी झूठे दिलासों की परत उतारने की जरूरत है। क्योंकि विधानसभा में मिली हार सिर्फ भीतरघातियों की वजह से नहीं थी। बल्कि, कांग्रेस की गुटबाजी, लचर रवैया और मतलबपरस्ती भी इसके पीछे बड़ा कारण थी।
कांग्रेस को नतीजे अपने पक्ष में लाने एकजुट रहना होगा
चुनाव सिर पर आ गए उसके बाद भी कांग्रेस के दो दिग्गज टिकट के दावेदारों के नाम फाइनल नहीं कर सके थे। नाम फाइनल हुए तो फिर खींचतान मची और कुछ टिकट बदलने पड़े। बड़े नेता अपना दबदबा साबित करने के चक्कर में पार्टी को हार की गर्त में धकेल गए। तो कांग्रेस को ये सोचना जरूरी है कि सिर्फ अनुशासन समिति गठित करने और से पार्टी से धोखेबाजी करने वाले नेताओं को सबक सिखाने से कुछ मिलने वाला नहीं है। लोकसभा चुनाव में हालात बेहतर बनाने हैं और नतीजे अपने पक्ष में लाने हैं तो पार्टी में बचे हुए नेताओं को एकजुट रहना होगा। ठोस फैसले लेने होंगे और जनता के बीच एक्टिव होना होगा। इसके बाद भी एक सवाल और उठता है और यही सवाल मैंने पिछली बार भी पूछा था और इस बार भी पूछता हूं न सिर्फ कांग्रेस से बल्कि, आप लोगों से भी कि क्या कांग्रेस सिर्फ दो महीने के अंदर राम मंदिर की कोई कारगर काट ढूंढ सकती है।